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Saturday, 15 December 2012

इस्लाम की प्रमुख शिक्षाएं


)( ईश्वर एक है, उसका कोई साझी नहीं। वह अकेला है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह अत्यंत कृपाशील और दयावान् है।
)( ईश्वर अपने बन्दों के प्रति इतना उदार है कि उनकी ग़लतियों और भूलों को क्षमा कर देता है बशर्ते कि वे उसकी ओर रुजू करें। गुनाहगार और पापी भी यदि पश्चाताप प्रकट करके पवित्र जीवन की प्रतिज्ञा करता है तो उस पर भी ईश्वर दया करता है।
)( जिनलोगों ने ईश्वर का भय रखा और परह
ेज़गारी का जीवन बिताया उनके लिए स्वर्ग है। और जिन्होंने ईश्वर का इन्कार किया औन सरकशी का जीवन बिताया उनका ठिकाना निश्चित रूप से नरक है।
)( जो व्यक्ति झूठ न बोले, वादा करके न तोड़े, अमानत में ख़यानत न करे, आंखें नीची रखे, गुप्त अंगों की रक्षा करे और अपने हाथ को दूसरें को दुख और कष्ट पहुंचाने से रोके, वह जन्नत में जाएगा।
)( घमंड से बचो। घमंड ही वह पाप है जिसने सबसे पहले शैतान को तबाह किया।
)( आपस में छल-कपट और बैर न रखो। डाह और ईष्र्या न करो, पीठ पीछे किसी की बुराई न करो। तुम सब भाई भाई हो।
)( शराब कभी न पियो।
)( जीव-जन्तुओं को अकारण मत मारो।
)( माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो। मां-बाप की ख़ुशी में ईश्वर की ख़ुशी है।
)( बाल-बच्चों की अच्छी देख भाल करो और उनको अच्छी शिक्षा दो।
)( किसी इन्सान को किसी पर कोई श्रेष्ठता प्राप्त नहीं है। हां, वह इन्सान सर्वश्रेष्ठ है जिसके कर्म अच्छे हैं। चाहे उसका सम्बन्ध किसी भी देश अथवा सम्प्रदाय से हो।
)( ब्याज खाना और ब्याज का कारोबार हराम (अवैध) है।
)( नाप-तौल में कमी न करो।
)( सबके साथ न्याय करो, चाहे तुम्हारे रिश्तेदार हो या दुश्मन।
)( अगर कोई किसी इंसान को नाहक़ क़त्ल करता है तो मानो उसने सारे इंसानों की हत्या कर दी। और अगर कोई किसी इंसान की जान बचाता है तो मानो उसने सारे इंसानों को ज़िन्दगी बख्शी।
)( सफ़ाई सुथराई आधा ईमान है।
)( वह आदमी मुसलमान नहीं जो ख़ुद तो पेट भर खाए और उसका पड़ोसी भूखा रहे।
)( सारे इंसानों को मरने के बाद ख़ुदा के सामने हाजि़र होना है और अपने कर्मों का हिसाब देना है। यह दुनिया तो इम्तिहान की जगह है।
)( ख़ुदा इंसानों के मार्गदर्शन के लिए अपने पैग़म्बर भेजता रहा है और अन्त में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को अपना आख़िरी पैग़म्बर बनाकर भेजा है। रहती दुनिया तक सारे इंसानों के लिए ज़रूरी है कि हज़रत मुअम्मद (सल्ल.) का अनुसरण करें।
)( क़ुरआन अल्लाह की भेजी हुई किताब है जो हज़रत मुअम्मद (सल्ल.) के ज़रिये समस्त इंसानों की रहनुमाई के लिए भेजी गयी। इसमें पूरी ज़िन्दगी के लिए हिदायतें दी गई हैं।
)( जाति, रंग, भाषा, क्षेत्र, राष्ट्र, राष्ट्रीयता के आधर पर हिकसी के साथ ऊँच-नीच, छूतछात, भेदभाव और पक्षपात का व्यवहार न करो।
)( ग़लत तरीके से दूसरें का माल न खाओ। हलाल (वैध) कमाई करो।

वे क्या कहते है मुहम्मद (सल्ल०) के विषय में .....


1. Prof. Ram Krishna Rao:
 "मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के व्यक्तित्व की पूरी सच्चाई में उतर पाना सबसे कठिन हैं में केवल उसकी एक झलक ही पा सकता हूँ. सिनेमा के दृश्यों जैसा कैसा नाटकीय अनुक्रम हैं. ये मुहम्मद हैं, देवदूत-यह मुहम्मद, जनरल- ये मुहम्मद हैं, बिजनेसमैन- मुहम्मद, प्रचारक-मुहम्मद, दार्शनिक- मुहम्मद, व्यवस्थापक- मुहम्मद, सुवक्ता- मुहम्मद, सुधारक- मुहम्मद, अनाथो का सहारा- मुहम्मद, गुलामो का संरक्षक- मुहम्मद, स्त्रियों का उद्धारकर्ता- मुहम्मद, नियायधीश- मुहम्मद, संत और इन सभी प्रतापिमान मैदानों में, मानव गहमागहमी के इन सभी विभागों में वह एक हीरो के सामान है."
- The Prophet of Islam by Prof. Ram Krishna Rao, (then) head of the department of philosophy, Maharani Arts College for Women, crecent publishing co. IIIrd Edition, 1982- p17.

2. स्वामी विवेकानंद (विश्व-विख्यात धर्मविद्)
‘‘मुहम्मद (इन्सानी) बराबरी, इन्सानी भाईचारे और तमाम मुसलमानों के भाईचारे के पैग़म्बर थे। ...जैसे ही कोई व्यक्ति इस्लाम स्वीकार करता है पूरा इस्लाम बिना किसी भेदभाव के उसका खुली बाहों से स्वागत करता है, जबकि कोई दूसरा धर्म ऐसा नहीं करता। ...हमारा अनुभव है कि यदि किसी धर्म के अनुयायियों ने इस (इन्सानी) बराबरी को दिन-प्रतिदिन के जीवन में व्यावहारिक स्तर पर बरता है तो वे इस्लाम और सिर्फ़ इस्लाम के अनुयायी हैं। ...मुहम्मद (सल्ल०) ने अपने जीवन-आचरण से यह बात सिद्ध कर दी कि मुसलमानों में भरपूर बराबरी और भाईचारा है। यहाँ वर्ण, नस्ल, रंग या लिंग (के भेद) का कोई प्रश्न ही नहीं। ...इसलिए हमारा पक्का विश्वास है कि व्यावहारिक इस्लाम की मदद लिए बिना वेदांती सिद्धांत—चाहे वे कितने ही उत्तम और अद्भुत हों—विशाल मानव-जाति के लिए मूल्यहीन (Valueless) हैं।’’
—‘टीचिंग्स ऑफ विवेकानंद, पृष्ठ-214, 215, 217, 218), अद्वैत आश्रम, कोलकाता-2004


3. स्वामी लक्ष्मिशंकराचार्ये: 
"मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की पवित्र जीवनी पढने के बाद मैने पाया की आपने एकेश्वरवाद के सत्य को स्थापित करने के लिए अपार कष्ट झेले.
मक्का के काफिर सत्य धर्म की राह में रोड़ा डालने के लिए आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को तथा आपके सत्य मार्ग पर चलने वाले मुसलमानों को लगातार 13 सालो तक हर तरह से प्रताड़ित  व अपमानित करते रहे. इस घोर अत्याचार के बाद भी आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने धैर्य बनाये रखा. यहाँ तक की आपको अपना वतन छोड़ कर मदीना जाना पड़ा. लेकिन मक्का के मुशरिक कुरेश ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का व मुसलमानों का पीछा यहाँ भी नहीं छोड़ा. जब पानी सर से ऊपर हो गया तो अपनी व मुसलमानों की तथा सत्य की रक्षा के लिए मजबूर हो कर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को लड़ना पड़ा इस तरह आप पर व मुसलमानों पर लड़ाई  थोपी गयी. 
इन्ही परिस्थितियों में सत्य की रक्षा के लिए जिहाद (यानी आत्मरक्षा व धर्म रक्षा के लिए धर्मयुद्ध) की आयते और अन्यायी तथा अत्याचारी काफ़िरो व मुशरिको को दंड देने वाली आयते अल्लाह की ओर से आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर आसमान से उतरी. 
पेयगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) द्वारा लड़ी गयी लडाईया आक्रमण के लिए न हो  कर, आक्रमण व आतंकवाद से बचाव के लिए थी, क्यूंकि अत्याचारियों के साथ ऐसा किये बिना शान्ति की स्थापना नहीं हो सकती थी. अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने सत्य  तथा शान्ति के लिए अंतिम सीमा तक धैर्य रखा और धैर्य की अंतिम सीमा से युद्ध की शुरुआत होती है. इस प्रकार का युद्ध ही धर्म युद्ध कहलाता है. 
विशेष रूप से ध्यान देने योग्य हैं की कुरेश जिन्होंने आप व मुसलमानों पर भयानक अत्याचार किये   थे, फ़तेह मक्का ( यानी मक्का विजय) के दिन वह थर-थर काँप रहे थे की आज क्या होगा? लेकिन आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)  ने उन्हें माफ़ कर गले लगा लिया.
पेयगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की इस पवित्र जीवनी से सिद्ध  होता है की इस्लाम का अंतिम उद्देश्य दुनिया में सत्य और शान्ति स्थापना और आतंकवाद का विरोध है. 
अत: इस्लाम को हिंसा व आतंक से जोड़ना सबसे बड़ा असत्य है. यदि कोई ऐसी घटना होती है  तो उसको इस्लाम से या सम्पूर्ण मुस्लिम समुदाय से जोड़ा नहीं जा सकता."
- स्वामी लक्ष्मिशंकराचार्ये, 'इस्लाम आतंक या आदर्श', भाग 1 पेज 19-20

4. राजेन्द्र नारायण लाल (एम॰ ए॰ (इतिहास) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय):
‘‘...संसार के सब धर्मों में इस्लाम की एक विशेषता यह भी है कि इसके विरुद्ध जितना भ्रष्ट प्रचार हुआ किसी अन्य धर्म के विरुद्ध नहीं हुआ । सबसे पहले तो महाईशदूत मुहम्मद साहब की जाति कु़रैश ही ने इस्लाम का विरोध किया और अन्य कई साधनों के साथ भ्रष्ट प्रचार और अत्याचार का साधन अपनाया। यह भी इस्लाम की एक विशेषता ही है कि उसके विरुद्ध जितना प्रचार हुआ वह उतना ही फैलता और उन्नति करता गया तथा यह भी प्रमाण है—इस्लाम के ईश्वरीय सत्य-धर्म होने का। इस्लाम के विरुद्ध जितने प्रकार के प्रचार किए गए हैं और किए जाते हैं उनमें सबसे उग्र यह है कि इस्लाम तलवार के ज़ोर से फैला, यदि ऐसा नहीं है तो संसार में अनेक धर्मों के होते हुए इस्लाम चमत्कारी रूप से संसार में कैसे फैल गया? इस प्रश्न या शंका का संक्षिप्त उत्तर तो यह है कि जिस काल में इस्लाम का उदय हुआ उन धर्मों के आचरणहीन अनुयायियों ने धर्म को भी भ्रष्ट कर दिया था। अतः मानव कल्याण हेतु ईश्वर की इच्छा द्वारा इस्लाम सफल हुआ और संसार में फैला, इसका साक्षी इतिहास है...।’’
‘‘...इस्लाम को तलवार की शक्ति से प्रसारित होना बताने वाले (लोग) इस तथ्य से अवगत होंगे कि अरब मुसलमानों के ग़ैर-मुस्लिम विजेता तातारियों ने विजय के बाद विजित अरबों का इस्लाम धर्म स्वयं ही स्वीकार कर लिया। ऐसी विचित्र घटना कैसे घट गई? तलवार की शक्ति जो विजेताओं के पास थी वह इस्लाम से विजित क्यों हो गई...?’’
‘‘...मुसलमानों का अस्तित्व भारत के लिए वरदान ही सिद्ध हुआ। उत्तर और दक्षिण भारत की एकता का श्रेय मुस्लिम साम्राज्य, और केवल मुस्लिम साम्राज्य को ही प्राप्त है। मुसलमानों का समतावाद भी हिन्दुओं को प्रभावित किए बिना नहीं रहा। अधिकतर हिन्दू सुधारक जैसे रामानुज, रामानन्द, नानक, चैतन्य आदि मुस्लिम-भारत की ही देन है। भक्ति आन्दोलन जिसने कट्टरता को बहुत कुछ नियंत्रित किया, सिख धर्म और आर्य समाज जो एकेश्वरवादी और समतावादी हैं, इस्लाम ही के प्रभाव का परिणाम हैं। समता संबंधी और सामाजिक सुधार संबंधी सरकरी क़ानून जैसे अनिवार्य परिस्थिति में तलाक़ और पत्नी और पुत्री का सम्पत्ति में अधिकतर आदि इस्लाम प्रेरित ही हैं...।’’
— 
राजेन्द्र नारायण लाल (एम॰ ए॰ (इतिहास) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)
‘इस्लाम एक स्वयंसिद्ध ईश्वरीय जीवन व्यवस्था’
पृष्ठ 40,42,52 से उद्धृत, साहित्य सौरभ, नई दिल्ली, 2007 ई॰

Wednesday, 11 July 2012

अंतिम अवतार मुहम्मद सल्ल०. (उन पर ईश्वर की शान्ति हो):



1. अश्वरोहन एवं खड्ग्धारण- भगवतपुराण (12:02:19), द्वादश स्कंध द्वितीय अध्याय के उन्नीसवे श्लोक से कल्कि का देवताओ द्वारा दिए गए  अश्व (horse) पर चड़ना एवं तलवार द्वारा   दुष्टों का संहार करना उल्लिखित है. कल्कि का घोड़ा जो देवताओ द्वारा उन्हें दिया जायेगा बहुत उत्तम रहेगा, उसी पर चड़कर वो दुष्टों का संहार करेंगे. मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वास्सल्लम (उन  पर ईश्वर की शान्ति हो) को भी फरिश्तो द्वारा घोड़ा मिला था, जिसका नाम बुर्राक था, उस पर  बैठकर मुहम्मद सल्ल० ने रात्री को तीर्थ यात्रा की थी, मुहम्मद सल्ल० को घोड़े अधिक प्रिय थे. और उनके सात (7) घोड़े थे. अंतिम अवतार को  खड्ग्धारी बताया गया है दुष्टों का संहार अंतिम अवतार के द्वारा तलवार से है ना की एटम बम आदि से. विचारणिये है की ये समय अणुयुग है ना की तलवार का युग. तलवार का युग बीत चुका है. मुहम्मद सल्ल० के पास 9 तलवारे थी. अनस ने कहा की मेने मुहम्मद सल्ल० को देखा की घोड़े पर सवार थे और गले में तलवार लटकाए हुए थे (बुखारी).

2. जगद्गुरु -  भगवतपुराण में अंतिम अवतार को जगद्पती कहा गया है (भगवतपुराण, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, उन्नीसवा श्लोक) जगत का अर्थ है 'संसार' और पति का अर्थ है 'रक्षक'. जगतपति शब्द का अर्थ हुआ की अपने उपदेशो द्वारा गिरते हुए समाज को बचाने वाला. वो समाज कोई सीमित समाज तो है नहीं, वो समाज है संसार. तात्पर्य ये हुआ की जगत का गुरु मुहम्मद सल्ल० के लिये भी कुरान में कहा गया है ऐ मुहम्मद (सल्ल०),! एलान कर दो सारी दुनिया भर के लिये नबी हो कर तुम आये हो.- कुरान 7:158. दूसरी जगह ये भी कहा गया है, की 'पवित्र है वो अस्तित्व, जिसने अपने भक्त पर पवित्र ग्रन्थ उतारा, ताकि सम्पूर्ण संसार के लिये वो पापो का डर दिखाने वाला हो' - कुरान 25:1.
इस प्रकार जगतगुरू का अस्तित्व एवं महत्व दोनों ही सिद्ध होते हैं.

3. असाधुदमन - कल्कि के विषय में उल्लेख है की वो दुष्टों का दमन करेंगे (भगवतपुराण  00:02:19). यही यही बात मुहम्मद सल्ल० पर भी घटित होती है. उन्होंने भी दमन किया, तो दुष्टों का ही. कुरान में यह भी कहा गया है, की जिनको सताया गया है, उनको आज्ञा दी जाती है की वे भी लड़ें, इस कारण से की उन पर अत्याचार किया गया है और परमेश्वर उनकी सहायता पर पुरी शक्ति  रखता है. जो लोग अपने घरों से निकाले गए केवल इस बात पर की ईश्वर उनका पालक है. मुहम्मद सल्ल० ने लुटेरो और डाकुओं को सुधार कर उन्हें एकेश्वरवाद की शिक्षा दी, तथा ईश्वर की पूजा में  और देवताओ के मिश्रण का विरोध किया तथा मूर्तिपूजा का भी खंडन किया. उन्होंने जिस धर्म की स्थापना की, उसके विषय में कहा की में प्राचीन धर्म को ही स्थापित कर रहा हूं, कोई यह नया धर्म नहीं है. इस्लाम शब्द का अर्थ है, ईश्वर की आज्ञा का पालन कराने वाला धर्म और वेद शब्द भी ईश्वर्ये वाणी हैं और उनकी आज्ञा पालन कराने वाला धर्म वैदिक धर्म है, अता वैदिक या इस्लाम धर्म और वैदिक धर्म में साम्य है. जो वैदिक या इस्लाम धर्म के मार्ग में बाधक है उन्हें नास्तिक या काफिर कहा जाता है, उनसे विरोध की बात और उनके दमन की बात स्वभाविक है.
जिस परिस्थिति में मुहम्मद सल्ल० का जन्म हुआ, वो परिस्थिति डाकुओं और दुष्टों से युक्त थी. लड़कियों को कत्ल कर दिया जाता था.
उनके जन्म के पहले इरान तो कुबाद प्रथम बादशाह था, जो भज्दक के उपदेश से प्रभावित हो कर ये घोषित कर चुका था की धन और औरत सभी की है, उन पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार नही. इसी के परिणाम स्वरूप व्यभिचार अपनी सीमा को पार कर चुका था. बाद में मुहम्मद सल्ल० ही ऐसे व्यक्ति हुए थे जिनके वर्ग ने उन आत्ताय्यों को पराजित करके धर्म की मर्यादा स्थापित करने में सफलता प्राप्त की.

4. स्थान सम्बन्धी साम्य - कल्कि का स्थान शम्भल (भगवतपुराण  12:02:18) होगा और वो वहाँ के   पुरोहित के यहाँ जन्म लेंगे. पुरोहित का नाम विष्णुयश होगा. इतना जो ज्ञात है की उक्त नाम संस्कृत भाषा के हैं, जो या तो अर्थ को निर्धारित करके लिखे गए हैं, या तो उन नामो का विकृत रूप  हो गया है.
  संस्कृत प्राय: अर्थप्रधान नामों को महत्व देता है, अतएव उन नामों के अर्थ को ही स्वीकार करना  अधिक उपयुक्त है.
'शम्भल'  शब्द शांत करना अर्थ वाली 'शम' धातु से बना हुआ है, जिसमे बन प्रत्ये लगा हुआ है. शम्भल शब्द का अर्थ होगा 'शान्ति का घर' और मक्का को अरबी भाषा में 'दारुल अमन''भी कहा जाता है, जिसका अर्थ 'शान्ति का घर' है.

5. प्रधान पुरोहित के यहाँ जन्म- कल्कि के विषय में यह कहा गया है की वो प्रधान पुरोहित के यहाँ  जन्म लेंगे. मुहम्मद सल्ल० ने भी मक्का में काबा के प्रधान पुरोहित के यहाँ जन्म लिया.

6. माता-पिता सम्बन्धी साम्य- कल्कि की माता का नाम कल्किपुराण में सुमति आया हुआ है जिसका अर्थ है, शान्ति एवं मंशील स्वभाव वाली. पिता का नाम विष्णुयश आया हुआ है, जो बहुत ही पवित्र तथा ईश्वर का उपासक होगा, मुहम्मद सल्ल० की माता का भी नाम आमिना था जिसका अर्थ होता है, शान्ति (अमन) वाली, तथा पिता का नाम 'अब्दुल्लाह' था. अब्दुल्ला का अर्थ है अल्लाह अर्थात विष्णु का बंदा (भक्त).


7. अंतिम अवतार की धारणा में साम्य- कल्कि को अंतिम युग का अंतिम अवतार बताया गया है (भगवतपुराण  प्रथम स्कंध, तृतीय अध्याय, पच्चीसवा (25) श्लोक). मुहम्मद ने भी घोषणा की है की में अंतिम संदेष्टा हूं. यही करण है की मुसलमान भावी किसी संदेष्टा या अवतार को नही मानते.
'कल्कि' शब्द का अर्थ 'वाचस्पत्यम' तथा 'शब्द्कल्प्तारू' में अनार का फल खाने वाला तथा कलंक को धोने वाला किया गया है. मुहम्मद सल्ल० भी अनार और खजूर का फल खाते थे, तथा उन्होंने प्राचीन  काल से आगत मिश्रण (शिर्क) और नास्तिकता (कुफ्र) को धो दिया.

8. उत्तरदिशीगमन तथा उपदेश सम्बन्धी साम्य- कल्कि पुराण में उल्लिखित है, की कल्कि पैदा  होने के बाद पहाड़ी की तरफ चले जाएंगे और वहा परशुराम जी से ज्ञान प्राप्त करेंगे बाद में उत्तर की तरफ जाकर फिर लोटेंगे. मुहम्मद सल्ल० भी जन्म के कुछ समय बाद पहाड़ियों की तरफ चले गए और वहाँ जिब्रील (अलैह०) द्वारा ज्ञान प्राप्त किया, अर्थात उन पर कुरान की आयतों का उतरना शुरू हुआ. उसके बाद वो उत्तर मदीने जाकर वहाँ से फिर दक्षिण की ओर लोट आए और अपने स्थान को विजित किया, यही घटना कल्कि के विषय में भी घटने की पुरानो द्वारा घोषणा हैं.

9. जन्मतिथि सम्बन्धी साम्य- कल्किपुराण में कल्कि के जन्म की तिथि के संबंध में लिखा है की माधव मास में शुक्ल पक्ष द्वादशी को जन्म होगा (कल्किपुराण अध्याय 2, श्लोक 15) और मुहम्मद सल्ल० का जन्म भी 12 रबी उल अव्वल को हुआ था. 12 रबी उल अव्वल का अर्थ है, चान्द की (12) बारहवी तिथि अर्थात शुक्लपक्ष द्वादशी.

Saturday, 7 July 2012

मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अंतिम दूत (आखरी पैग़म्बर) विभिन्न धर्मों में:

वेदों ने अपने एक महान दूत का नाम अग्नि बताया था:
"हम अग्नि को दूत (पैग़म्बर) चुनते है"
-ऋग्वेद 01:12:01
यहाँ अग्नि से मतलब आग नही बल्कि मनुष्य (इनसान) है, ऋग्वेद (01:31:15) में अग्नि को साफ़-साफ़ 'नर' यानि मनुष्य (इनसान) बताया गया है. फिर ऋग्वेद (03:29:11) में कहा गया है की अग्नि का एक नाम 'नराशंस' है वो नराशंस नाम से ही दुनिया में आयेंगे. शब्द 'नराशंस' का अनुवाद प्रशंसा योग्य मनुष्य या "मुहम्मद" होता है. फिर अर्थर्ववेद (20:127:1-3) में साफ़-साफ़ कह दिया गया कि नराशंस के आने पर उनकी बहुत प्रशंसा होगी, ऊंट उनकी सवारी होगी, उनकी कई पत्नियाँ होंगी. फिर उस वक्त के मक्के की आबादी 60,090 होना, अलंकृत राजभाषा में हबशा (इथियोपिया) मुल्क में पनाह लेने वालो की संख्या 100 होना, 10 जन्नती (अशरा मुबश्शिरा) सहाबा का इशारा, बदर जंग में फ़तह हो कर लोटने वालो की संख्या 300 और मक्के की फ़तह के वक्त इस्लामी सेना की संख्या 10,000 का भी ज़िक्र किया गया है. वेद मंत्रो का यह अनुवाद प्राचीन अनुवादको पंडित राजाराम और पंडित खेमकरण के अनुवादों पर आधारित है. चंडीगढ़ विश्वविध्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर पंडित वेद प्रकाश उपाध्याय ने ये सारी वियाख्या बहुत साफ़ शब्दों में लिखी है.

वेदों ने अपने अवतरण काल के बहुत बाद 'नराशंस' नाम के एक दूत (पैग़म्बर) के आने की भविष्यवाणी की थी और वेद लाने वाले अज्ञात ऋषि (नबी) को आखिरी नहीं कहा गया था. गीता (04:07) और श्रीमद भागवत महापुराण (09:24:56) में यह धारणा अंकित है की जब-जब दुनिया में धर्म बिगाड़ पैदा हो जाता है और बुराईया बढ़ जाती है तब अवतार दुनिया में आते हैं पोराणिक काल के ग्रंथो में दूत के बजाये अवतार की धारणा हैं.

यहूदियों की मोजुदा तोरेत और इसाइयों की मोजूदा इन्जीलो में भी हज़रत मूसा और हज़रत ईसा को आखिरी दूत (पैग़म्बर) नहीं कहा गया है. दोनों में साफ़ तरीके से बाद के किसी दौर में आने वाले एक दूत के आने के संकेत दिए गए हैं. से. इंजील में इनको Paraclete या Periclytos कहा गया है जिसका अनुवाद हैं "प्रशंसा योग्य" या फिर "मुहम्मद".

गौतम बुद्ध ने भी स्वयं को अंतिम "बुद्ध" नहीं कहा था. जब बुद्ध के शिष्य आनंद ने सवाल किया, "आपके जाने के बाद कौन मार्गदर्शन करेगा" बुद्ध ने जवाब दिया, "में दुनिया में आने वाला न तो पहला बुद्ध हूँ और न अंतिम होऊंगा. अपने समय में दुनिया में एक और बुद्ध आएगा वो पवित्र, बहुत बुद्धिमान होंगे. अच्छी ज़िंदगी का जानने वाला, इंसानियत का अनोखा नेता (नेता), फरिश्तो और अनित्ये मनुष्यों का गुरु होगा. मेने जो सत्य बाते तुम्हे बताई है वो तुम्हे बताएगा. वो ऐसे धर्म का प्रचार करेगा जिसका आरम्भ भी रोशन होगा मध्य भी रोशन होगा और अंत भी रोशन होगा. वो ऐसी मज़हबी ज़िंदगी बसर करेगा जो पूर्ण और पवित्र होगी, जैसा की मेरा ढंग है. उसके शिष्य हजारो होंगे जबकि मेरे सेकड़ो ही हैं. आनंद ने पूछा, "हम उसे कैसे पहचानेंगे?" बुद्ध ने जवाब दिया "वो मेत्रिये (कृपा करने वाले) के नाम से जाना जायेगा ...."

ग़ौर करे की गौतम बुद्ध ने भी अपने आपको अंतिम नहीं कहा बल्कि बाद के किसी दौर में आने वाले मेत्रेये (कृपालु) की भविष्यवाणी कि थी. ये सुन लें कि क़ुरान में हज़रत मुहम्मद सल्ल्ल० "रेह्मतुल्लिल आलमीन" (सभी संसारो के लिये कृपा) कहा गया है. पारसियों के दूत ज़र्थ्रूस्त्र के बारे में उनके पवित्र ग्रन्थ अवेस्ता में लिखा हैं की ईश्वर ने कहा जैसे ज़र्थ्रूस्त्र के रास्ते बराबर चलकर उसके मानने वाले वैभव की छोटी पर पहुचे इसी तरह भविष्य में एक वक्त में ईश्वर मैं मानने वाली एक कौम होगी जो दुनिया और उसके धर्मो को एक नयी ज़िंदगी देगी और जो पैग़म्बर की मदद के लिये खतरनाक युद्धों में खड़ी होगी. आगे दूत (पैग़म्बर) का नाम बताते हुए कहा, "जिसका नाम Vijaye Soeshyant होगा और जिसका नाम Astvat - Ereta होगा वो Soeshyaant (कृपा) होगा क्योंकि सारी दुनिया को उससे फायदा पहुचेगा और वो Astvat Ereta (जगाने वाला) होगा क्योंकि ज़िदा इंसान के रूप में वो इंसानों कि उस तबाही के खिलाफ खड़ा होगा जो मूर्ति पूजको और मज्दानियो की बुराईयों से फेलेगा .
(Farvardin Yasht, 25-29, Quoted by A.H. Vidyarthi in Mohammad in Parsi Scriptures P:18)

इस्लाम में अंतिम (पैग़म्बर) के दूत की धारणा के सिवा तमाम धर्मों में सिर्फ जैन धर्म के मानने तो धारणा रखते है की श्री महावीर अंतिम तीर्थकर थे लेकिन वह भी ये दावा सिर्फ जैनियों का है, स्वयं श्री महावीर के अपने शब्दों में उनके अंतिम होने का दावा हमें नहीं मिलता है.
इस्लाम दुनिया का ऐसा अकेला धर्म है जिसको पूर्ण करने वाले मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अंतिम दूत (पैग़म्बर) का ऐलान किया.
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सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम = उन पर ईश्वर ओर से शान्ति हो

Monday, 25 June 2012

कुरान में इंसान के चंद्रमा पर पहुँचने का वर्णन :


"हे जिनों और इंसानों की टोलियों! अगर तुम समझते हो की आसमान और पृथ्वी के वियासो (Diameters) * में से गुज़र कर पार निकल सकते हो तो ऐसा कर देखो अतिरिक्त बल के इस्तेमाल के बिना नहीं कर सकोगे. अब तुम अपने रब के किन-किन वरदानो को झूट्लाये जाओगे "
 - कुरान 55:33-34

 शक्ति और वेग के नियमो पर आधारित उपकरणों की सहायता से एक दिन पृथ्वी और अन्य ग्रहों  के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में से गुज़रना के सम्भव होगा, ये संकेत कुरान कर चूका था. उस काल में जो वाहन मौजूद थे उनके अतिरिक्त अन्य वाहनों की खोज होगी, ये भी कुरान ने बता दिया था -
 "अल्लाह ने घोड़े, खच्चर, गधे तुम्हारे वाहन और शोभा के लिये पैदा किए और वो (इनके अलावा ऐसे वाहन) पैदा करेगा जिनका तुम्हे अभी ज्ञान नही है."
- कुरान 16:8-9

 इन वाहनों पर सवार हो कर चंद्रमा पर पहुँचने का वर्णन देखिए -
"पूर्ण हो जाने वाला चंद्रमा गवाह है की तुम ज़रूर इस धरती से दूसरी धरती तक सवारी पर सवार हो कर जाओगे. (ये चमत्कार देख लेने के बाद) फिर इन्हें अब क्या हो गया की ईमान नहीं लाते. "
- कुरान 84:18-20

और ध्यान देने वाली एक बात और है की कुरान में चंद्रमा की जो सुरह (अध्याय) है सुरह क़मर (चंद्रमा) उसकी पहली आयत (मन्त्र) से ले कर कुरान की आखिरी सुरह 'सुरह नास' की आखिरी आयत तक जितनी आयते है उनकी संख्या 1389 बनती है और यही वो इस्लामी साल 1389 हिजरी (रोमन साल 1969) था जिस वर्ष नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा पहुंचा था. '
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* संकेत है, गुरुत्वाकर्षण की सीमा की ओर और पृथ्वी और अन्य ग्रहों के गोल होने तरफ भी.
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Wednesday, 7 March 2012

हिंदू धर्म में एकेश्वरवाद


1. सिर्फ एक ईश्वर है उसी की इबादत (उपासना) करो.
- ऋग्वेद 6:45:16

2. वो (ईश्वर) एक है उसका कोई साझी नहीं है.
- छान्दोग्य उपनिषद 6:02:01

3. जो असम्भूति अर्थात प्रकृति रूप से जड़ पदार्थ  (अग्नि, मिट्टी, वायु आदि)  की उपासना करते हैं, वह अज्ञान के अन्धकार में प्रविष्ट होते हैं और जो 'सम्भूति' अर्थात प्रकृति पदार्थो के परिणामस्वरूप सृष्टि (तख़्त, तस्वीर, मूर्तियाँ आदि) में रमन करते हैं वह उससे भी अधिक अन्धकार में पड़ते हैं.
- यजुर्वेद 40:9

4. ज्ञानी लोग एक ईश्वर को अलग-अलग नामो से पुकारते है.
- ऋग्वेद 1:164:46

5. उसकी कोई प्रतिमा नहीं है उसका नाम ही अत्यंत महान है, सबसे बड़ा यश यही है.
- यजुर्वेद 32:3

6. वो एक है लेकिन बुद्धिमान लोग उसे विभिन्न नामो से पुकारते है जैसे- इंद्र, मित्र, वरुण, अग्नि, दिव्या, प्रकाशपुंज, सुपर्णा (संसार की सुरक्षा और इसकी देखभाल करने वाला) इत्यादि उसका कार्य बिलकुल ठीक-ठीक होता है.
- ऋग्वेद 1:22:164

7. मेरे परम भाव को न जानने वाले मुर्ख लोग मुझ सम्पूर्ण भूतो के महान ईश्वर को शरीरधारी समझ कर मेरा अपमान करते हैं.
- गीता 9:11

8. वो शरीरविहीन (bodyless) और पाक है.
- यजुर्वेद 40:8

9. उसके सिवा किसी की उपासना ना करो वही खुदा है उसी की तारीफ करो.
- ऋग्वेद 8:01:01

10. मिट्टी पत्थर आदि की मूर्तियाँ देव नही होती है.
- श्रीमद भागवत महापुराण 10:84:11

11. सिर्फ वोह एक ही स्वयं से (बिना किसी के जन्म दिए) अकेला विधमान है.
- अर्थर्ववेद 13:04:12

13. एक ईश्वर ही पूजा के योग्य और सभी प्रजातियों में स्तुति के योग्य है.
- अर्थर्ववेद 2:02:01

इस्लाम और हिंदू धर्म में कुछ समान बाते

1. ज्ञानी लोग एक ईश्वर को अलग-अलग नामो से पुकारते है.
 - ऋग्वेद 1:164:46


कह दो तुम अल्लाह कह कर पुकारो या रहमान कह कर पुकारो उसे जो भी कह कर पुकारो, उसके सभी अच्छे नाम है.
- कुरान 17:110


2. ईश्वर के विधान नही बदलते.
- ऋग्वेद 1:24:10


अल्लाह की बातो में कोई परिवर्तन नहीं हुआ करता.
- कुरान 10:64


3. ऋषियों के द्वारा स्तुतिये (पूज्य) परमेश्वर ने परस्पर जुड़े हुए प्राचीन आसमान और पृथ्वी को अलग-अलग किया फिर उत्तम कर्म वाले ने सूर्ये के समान उन दोनों को स्थित  किया.
- ऋग्वेद 1:162:7


क्या इंकार करने वालो ने नही देख लिया की ये आसमान और धरती पहले परस्पर जुड़े हुए थे फिर हमने उन्हें अलग-अलग किया.
- कुरान 21:30


4. इस संसार के बनाए वाले के लिये स्तुति है.
- ऋग्वेद 5:81:1


स्तुतियो का पात्र अल्लाह ही है जो सब संसारो का प्रभु है.
- कुरान 1:01


5. जो देने वाला और दयावान है.
- ऋग्वेद 03:34:01

जो असीम कृपावान और दयावान है.

- कुरान 01:02


6. हमको हमारे कल्याण के लिये सदमार्ग पर ले चल.
- यजुर्वेद 40:16


हे परमेश्वर हमारा सीधे मार्ग की ओर मार्गदर्शन कर.
- कुरान 1:05


7. वह ईश्वर सारे जगत को भली प्रकार जानता है.
- ऋग्वेद 10:187:4


और अल्लाह आसमानों और धरती मुझे जो कुछ है उसे जानता हैं, अल्लाह हर वास्तु का ज्ञान रखता   है.
- कुरान 49:16

8. ईश्वर  के नियम कोई नहीं बदल सकता.

- अर्थर्ववेद 18:01:05


और तुम ईश्वर के विधान मुझे कोई परिवर्तन नहीं पाओगे.
- कुरान 48:23


9. संसार का सृष्टा आगे, पीछे, ऊपर, नीचे सब जगह है.
- ऋग्वेद 10:34:14


सो तुम जिधर भी मुंह करो उधर ही अल्लाह का रुख है, अल्लाह बेशक बड़ा सर्वविस्तृत और जानने  वाला है.
- कुरान 2:115


10. चंद्रमा सहित ये सब नक्षत्र उसी के वश में हैं.
- अर्थर्ववेद 13:428


उसी ने पैदा किए सूर्ये, चन्द्रमा और तारे, (ये) सब उसके आदेश के अधीन है.
- कुरान 7:54

Tuesday, 6 March 2012

श्रीराम शर्मा आचार्य के कथन धरम के सम्बन्ध में:



"सृष्टि का सृष्टा एक ही है. वही उत्पादन, अभिवर्धन तथा परिवर्तन की सारी प्रक्रियाए अपनी योजनानुसार संपन्न करता है. ना उसका कोई साझीदार है और न सहायक ...एक ही सत्ता भिंनन-भिन्न प्रकार की हो गयी और समझा जाने लगा की जो जिस देवी देवता की पूजा पतरी करेगा वह उसी को अपना समझेगा और उसी की हिमायत करेगा ... ये मान्यता है आज के बहुदेववाद की. प्रकार सृष्टा का ही खंड विभाजन नही हुआ वरन अपने - अपने कुल-वंश, ग्राम, नगर के भी पृथक-पृथक देवी - देवता बन गए. विभाजन और संकीर्णता इतने तक ही सीमित नही रही, परमेश्वर का भी बंटवारा कर लिया गया. अनेक देवी - देवता बन कर खड़े हो गए. उनकी आकृति ही नही प्रकृति भी अपने को न पूजने दुसरे को पूजने पर वह देवता रुष्ट और तिरस्कार देने पर उतारू होने लगे. शारीरिक, मानसिक बिमारियों को उन्ही के रुष्ट का कारण माना जाने लगा. बहुदेववाद के पीछे अनेकानेक कथा कहानियां जोड़ी गयी और उनकी प्रशंसा से मिलने वाले लाभों का उनकी नाराजगी से मिलने वाले त्रासों की महात्मे गाथाये गढ़ ली गयी. कितने ही देवताओं का किन्ही पर्व त्योहारों के साथ संबंध जोड़ दिया गया. कइयो के स्थान विशेष जाना आवश्यक माना गया. समझा जाना चाहिए की ईश्वर एक है. उसकी व्यवस्था में अनेक साझीदार नहीं हो सकते ... सम्प्रदायों में ईश्वर की आकृति और प्रकृति अनेक प्रकार की मानी गई है. यदि ये सच मानी जाए तो इनमे से किसी एक को सच्चा और बाक़ी सबको झूठा कहना पड़ेगा. उनके प्रति पूज्य भाव रखते हुए भी ये निर्णय करना कठिन है की परस्पर विरोधी इन प्रतिपादनों में कौन सही और कौन ग़लत है. तत्व दर्शन और विवेक बुध्दी के आधार पर यह मानना पड़ता है की परमेश्वर एक है. सम्प्रदायों की मान्यताओं के अनुसार उसके स्वरूप और विधान सही नहीं हो सकते. वियापक शक्ति को निराकार होना चाहिए. जिसका आकर होगा जो एक देशीय और सीमित रहेगा. कहा भी गया है - 'ना तस्य प्रतिमा अस्ति ' (यजुर्वेद 32:3) अर्थात उसकी कोई प्रतिमा नहीं है. ना स्वरूप ना छवि. आप्त वचनों का एक और भी कथन ऐसा ही अभेद है. उसमे कहा गया है - 'एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति' अर्थात 'एक ही परमेश्वर को विद्वानों ने बहुत प्रकार से कहा है'. यहाँ अन्धो द्वारा हाथी का एक-एक अंग पकड़ कर उसे उसी आकृति का बताये जाने वाली कहानी याद आ जाती है .... तत्वदर्शियो ने सर्वसाधारण की सामान्य बुद्धि को चित्रकारिता के माध्यम से मानवी गरिमा और उत्कृष्टा के लिये आवश्यक धारणाओं और प्रयासों के संबंध रहस्यमय चित्रों में चित्रित किया है. उनका ये अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए की निराकर, और सर्वव्यापी न्यायकारी परमेश्वर की सृष्टि वयवस्था में कोई साझीदार भी है और वह मात्र मनुहार, उपहार, उपचार के आधार पर प्रसन्न-अप्रसन्न होते रहते हैं. पात्रता कुपात्रता का विचार किए बिना शाप वरदान देते रहते हैं, रुष्ट और अप्रसन्न होते रहते हैं. ऐसी मान्यताये अंधविश्वास में गिनी जायेंगी और उन्हें अपनाने वाले को भ्रमित करेंगी. वास्तविकता को कोसो दूर ले जा पटकेंगी . हम में प्रत्येक को यथार्थवादी और तत्वदर्शी होना चाहिए".
श्री राम शर्मा आचार्य (13-16 पेज, अखंड ज्योति, जून 1985)