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Saturday, 15 December 2012

वे क्या कहते है मुहम्मद (सल्ल०) के विषय में .....


1. Prof. Ram Krishna Rao:
 "मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के व्यक्तित्व की पूरी सच्चाई में उतर पाना सबसे कठिन हैं में केवल उसकी एक झलक ही पा सकता हूँ. सिनेमा के दृश्यों जैसा कैसा नाटकीय अनुक्रम हैं. ये मुहम्मद हैं, देवदूत-यह मुहम्मद, जनरल- ये मुहम्मद हैं, बिजनेसमैन- मुहम्मद, प्रचारक-मुहम्मद, दार्शनिक- मुहम्मद, व्यवस्थापक- मुहम्मद, सुवक्ता- मुहम्मद, सुधारक- मुहम्मद, अनाथो का सहारा- मुहम्मद, गुलामो का संरक्षक- मुहम्मद, स्त्रियों का उद्धारकर्ता- मुहम्मद, नियायधीश- मुहम्मद, संत और इन सभी प्रतापिमान मैदानों में, मानव गहमागहमी के इन सभी विभागों में वह एक हीरो के सामान है."
- The Prophet of Islam by Prof. Ram Krishna Rao, (then) head of the department of philosophy, Maharani Arts College for Women, crecent publishing co. IIIrd Edition, 1982- p17.

2. स्वामी विवेकानंद (विश्व-विख्यात धर्मविद्)
‘‘मुहम्मद (इन्सानी) बराबरी, इन्सानी भाईचारे और तमाम मुसलमानों के भाईचारे के पैग़म्बर थे। ...जैसे ही कोई व्यक्ति इस्लाम स्वीकार करता है पूरा इस्लाम बिना किसी भेदभाव के उसका खुली बाहों से स्वागत करता है, जबकि कोई दूसरा धर्म ऐसा नहीं करता। ...हमारा अनुभव है कि यदि किसी धर्म के अनुयायियों ने इस (इन्सानी) बराबरी को दिन-प्रतिदिन के जीवन में व्यावहारिक स्तर पर बरता है तो वे इस्लाम और सिर्फ़ इस्लाम के अनुयायी हैं। ...मुहम्मद (सल्ल०) ने अपने जीवन-आचरण से यह बात सिद्ध कर दी कि मुसलमानों में भरपूर बराबरी और भाईचारा है। यहाँ वर्ण, नस्ल, रंग या लिंग (के भेद) का कोई प्रश्न ही नहीं। ...इसलिए हमारा पक्का विश्वास है कि व्यावहारिक इस्लाम की मदद लिए बिना वेदांती सिद्धांत—चाहे वे कितने ही उत्तम और अद्भुत हों—विशाल मानव-जाति के लिए मूल्यहीन (Valueless) हैं।’’
—‘टीचिंग्स ऑफ विवेकानंद, पृष्ठ-214, 215, 217, 218), अद्वैत आश्रम, कोलकाता-2004


3. स्वामी लक्ष्मिशंकराचार्ये: 
"मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की पवित्र जीवनी पढने के बाद मैने पाया की आपने एकेश्वरवाद के सत्य को स्थापित करने के लिए अपार कष्ट झेले.
मक्का के काफिर सत्य धर्म की राह में रोड़ा डालने के लिए आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को तथा आपके सत्य मार्ग पर चलने वाले मुसलमानों को लगातार 13 सालो तक हर तरह से प्रताड़ित  व अपमानित करते रहे. इस घोर अत्याचार के बाद भी आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने धैर्य बनाये रखा. यहाँ तक की आपको अपना वतन छोड़ कर मदीना जाना पड़ा. लेकिन मक्का के मुशरिक कुरेश ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का व मुसलमानों का पीछा यहाँ भी नहीं छोड़ा. जब पानी सर से ऊपर हो गया तो अपनी व मुसलमानों की तथा सत्य की रक्षा के लिए मजबूर हो कर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को लड़ना पड़ा इस तरह आप पर व मुसलमानों पर लड़ाई  थोपी गयी. 
इन्ही परिस्थितियों में सत्य की रक्षा के लिए जिहाद (यानी आत्मरक्षा व धर्म रक्षा के लिए धर्मयुद्ध) की आयते और अन्यायी तथा अत्याचारी काफ़िरो व मुशरिको को दंड देने वाली आयते अल्लाह की ओर से आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर आसमान से उतरी. 
पेयगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) द्वारा लड़ी गयी लडाईया आक्रमण के लिए न हो  कर, आक्रमण व आतंकवाद से बचाव के लिए थी, क्यूंकि अत्याचारियों के साथ ऐसा किये बिना शान्ति की स्थापना नहीं हो सकती थी. अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने सत्य  तथा शान्ति के लिए अंतिम सीमा तक धैर्य रखा और धैर्य की अंतिम सीमा से युद्ध की शुरुआत होती है. इस प्रकार का युद्ध ही धर्म युद्ध कहलाता है. 
विशेष रूप से ध्यान देने योग्य हैं की कुरेश जिन्होंने आप व मुसलमानों पर भयानक अत्याचार किये   थे, फ़तेह मक्का ( यानी मक्का विजय) के दिन वह थर-थर काँप रहे थे की आज क्या होगा? लेकिन आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)  ने उन्हें माफ़ कर गले लगा लिया.
पेयगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की इस पवित्र जीवनी से सिद्ध  होता है की इस्लाम का अंतिम उद्देश्य दुनिया में सत्य और शान्ति स्थापना और आतंकवाद का विरोध है. 
अत: इस्लाम को हिंसा व आतंक से जोड़ना सबसे बड़ा असत्य है. यदि कोई ऐसी घटना होती है  तो उसको इस्लाम से या सम्पूर्ण मुस्लिम समुदाय से जोड़ा नहीं जा सकता."
- स्वामी लक्ष्मिशंकराचार्ये, 'इस्लाम आतंक या आदर्श', भाग 1 पेज 19-20

4. राजेन्द्र नारायण लाल (एम॰ ए॰ (इतिहास) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय):
‘‘...संसार के सब धर्मों में इस्लाम की एक विशेषता यह भी है कि इसके विरुद्ध जितना भ्रष्ट प्रचार हुआ किसी अन्य धर्म के विरुद्ध नहीं हुआ । सबसे पहले तो महाईशदूत मुहम्मद साहब की जाति कु़रैश ही ने इस्लाम का विरोध किया और अन्य कई साधनों के साथ भ्रष्ट प्रचार और अत्याचार का साधन अपनाया। यह भी इस्लाम की एक विशेषता ही है कि उसके विरुद्ध जितना प्रचार हुआ वह उतना ही फैलता और उन्नति करता गया तथा यह भी प्रमाण है—इस्लाम के ईश्वरीय सत्य-धर्म होने का। इस्लाम के विरुद्ध जितने प्रकार के प्रचार किए गए हैं और किए जाते हैं उनमें सबसे उग्र यह है कि इस्लाम तलवार के ज़ोर से फैला, यदि ऐसा नहीं है तो संसार में अनेक धर्मों के होते हुए इस्लाम चमत्कारी रूप से संसार में कैसे फैल गया? इस प्रश्न या शंका का संक्षिप्त उत्तर तो यह है कि जिस काल में इस्लाम का उदय हुआ उन धर्मों के आचरणहीन अनुयायियों ने धर्म को भी भ्रष्ट कर दिया था। अतः मानव कल्याण हेतु ईश्वर की इच्छा द्वारा इस्लाम सफल हुआ और संसार में फैला, इसका साक्षी इतिहास है...।’’
‘‘...इस्लाम को तलवार की शक्ति से प्रसारित होना बताने वाले (लोग) इस तथ्य से अवगत होंगे कि अरब मुसलमानों के ग़ैर-मुस्लिम विजेता तातारियों ने विजय के बाद विजित अरबों का इस्लाम धर्म स्वयं ही स्वीकार कर लिया। ऐसी विचित्र घटना कैसे घट गई? तलवार की शक्ति जो विजेताओं के पास थी वह इस्लाम से विजित क्यों हो गई...?’’
‘‘...मुसलमानों का अस्तित्व भारत के लिए वरदान ही सिद्ध हुआ। उत्तर और दक्षिण भारत की एकता का श्रेय मुस्लिम साम्राज्य, और केवल मुस्लिम साम्राज्य को ही प्राप्त है। मुसलमानों का समतावाद भी हिन्दुओं को प्रभावित किए बिना नहीं रहा। अधिकतर हिन्दू सुधारक जैसे रामानुज, रामानन्द, नानक, चैतन्य आदि मुस्लिम-भारत की ही देन है। भक्ति आन्दोलन जिसने कट्टरता को बहुत कुछ नियंत्रित किया, सिख धर्म और आर्य समाज जो एकेश्वरवादी और समतावादी हैं, इस्लाम ही के प्रभाव का परिणाम हैं। समता संबंधी और सामाजिक सुधार संबंधी सरकरी क़ानून जैसे अनिवार्य परिस्थिति में तलाक़ और पत्नी और पुत्री का सम्पत्ति में अधिकतर आदि इस्लाम प्रेरित ही हैं...।’’
— 
राजेन्द्र नारायण लाल (एम॰ ए॰ (इतिहास) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)
‘इस्लाम एक स्वयंसिद्ध ईश्वरीय जीवन व्यवस्था’
पृष्ठ 40,42,52 से उद्धृत, साहित्य सौरभ, नई दिल्ली, 2007 ई॰

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