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Thursday, 4 September 2014

पुनर्जन्म का सच


पुनर्जन्म का शाब्दिक अर्थ होता हैं दोबारा से जन्म पुन: अर्थात दोबारा, जन्म अर्थात जन्म, पुनर्जन्म का अर्थ दोबारा से जन्म होता हैं न की बार-बार तीसरी या चौथी आदि बार जन्म, इस्लाम पुनर्जन्म में विश्वास रखता हैं और ये उसकी बुनयादी शिक्षाओ में से एक हैं हर मुसलमान मरने के बाद महाप्रलय (क़यामत) के दिन दोबारा से जिंदा किये जाने पर विश्वास रखता हैं और दूसरी बात बार-बार, हर बार के लिए बिलकुल अलग ही परिभाषित शब्द होता हैं जिसे हम अवागमन के नाम से जानते हैं अवागमन का सिद्धान्त में धारणा रखने वाले लोग यह विश्वास रखते हैं की व्यक्ति अपने पिछले कर्मो के अनुसार इसी लोक में अलग अलग योनियो में पैदा किया जाता हैं और पिछले कर्मो के अनुसार ही वो इस जीवन में जीवन व्यतीत करता हैं,

आइये, अवागमन के सिद्धान्त को मानने वाले लोग क्या-क्या धरना रखते हैं उसे देखें:

(1) कुछ लोगो का मानना हैं कि 'मनुष्य अपने कर्मानुसार ही इसी लोक में जानवर या वनस्पति श्रेणी में जन्म लेता हैं।'
(2) कुछ लोग यह मानते हैं कि 'हम नर्क या स्वर्ग में तो जायेंगे मगर हमारे हिस्से में कुछ पुण्ये या पाप बचेगा तो इश्वर हमें फिर इसी दुनिया में किसी भी जीव कि श्रेणी में भेज देगा और फिर यही क्रम चलता रहेगा।'
(3) कुछ लोग ये कहते हैं कि 'अवागमन के चक्र से कभी किसी को मुक्ति नहीं मिलेगी।'
(4) कुछ लोग ये कहते हैं कि 'नहीं, बार-बार जन्म लेते रहने से कभी तो पाप खत्म होंगे-फिर हम को मोक्ष प्राप्त हो जायेगा।'
(5) कुछ अन्य लोग यह कहते हैं कि 'इंसान अपने बुरे कर्मो के बदले में कोई जानवर या वनस्पति बनेगा और इसी लोक में अपने बुरे कर्मो के फल भुक्तेगा'।

आइये आवागमन के सिद्धान्त का बुद्धि-विवेक व शास्त्रों के आधार पर विवेचनात्मक मूल्यांकन करें-

सबसे पहले ये ज्ञात रहे कि सत्य एक होता और झूट कई प्रकार का होता हैं। पुनर्जन्म कि आस्था सब इश्ग्रन्थो में एक प्रकार कि हैं चाहे वो वेदों में हो या बाइबिल में या फिर कुरान में, लेकिन आवागमन में आस्था कई प्रकार से दिखाई जाती हैं, जिससे मालूम होता हैं कि पुनर्जन्म का सिद्धान्त सही हैं और आवागमन का ग़लत।

कर्म योनि - भोग योनि

कर्म योनि वो योनि होती हैं जहा हमें कर्म करने होते हैं। भोग योनि वो योनि होती हैं जहा हमें हमारे कर्म के अनुसार भोग भोगना होता हैं।
हिन्दू पोराणिक विधान के अनुसार मनुष्य योनि 'कर्म व भोग दोनों योनि हैं' अर्थात मनुष्य को केवल इसी योनि में कर्म करने होते हैं और साथ साथ उसे अपने पिछले कर्मो का फल भी भोगना होता हैं। जबकि 'जानवर व वनस्पति योनि' केवल भोग योनि होती हैं, वहा कोई कर्म नहीं होता अर्थात जानवर तो इसलिए जानवर हैं क्यूंकि पहले वे मनुष्य योनि में कुछ ऐसे कर्म करके आया था कि अब वो जानवर बना दिया गया।

हमें हमारे धार्मिक ग्रंथो और विज्ञान ने बताया कि समय के प्रारंभ में इस धरती पर कुछ नहीं था ये धरती सूर्य का एक अंग थी हीर वो अंग अलग हो कर सूर्य के चारो ओर चक्कर काटने लगा इसलिए धरती के अन्दर आज भी भीषण गर्मी हैं। उस ठन्डे हिस्से को भुप्रष्ट या भूपटल कहते हैं जिस पर हम रहते हैं इस भूपटल के ठंडा होने के बहुत अन्तराल के बाद, इस पर पानी बरसा, फिर भिन्न-भिन्न प्रकार कि वनस्पति उगी, फिर एक लम्बी अवधि के के उपरान्त, जानवर आये फिर वनस्पति व जानवरों कि दीर्घावधि के के बाद मनुष्य इस धरती पर आया। ये पूरी कार्यप्रणाली एक ज्ञात सत्य हैं।
इस कार्यप्रणाली को देखें तो हमे पता चलता हैं कि
(का) पहले इस धरती का कुछ भी नहीं था,
(ख) फिर पानी बरसा और पेड़ पोधे उगे जो कि केवल भोग योनि हैं।
(ग) फिर एक दीर्घावधि गुज़र जाने के बाद जानवर इस धरती पर आये ये भी भोग हैं।
(घ) जानवरों कि दीर्घावधि उपरान्त भूपटल पर हम मनुष्य आये, जो कि भोग व कर्म योनि हैं।
अगर हम इस पूरी प्रणाली पर नज़र डाले तो यह इस पोस्ट के नीचे के चित्र के सामान होगी

अब प्रश्न जो हर चिंतन करने वाले कि बुद्धि में आएगा वो ये कि ऊपर उध्दरित तथ्य में भोग योनिय तो पहले आई और कर्म योनि बाद में!!! ऐसा कैसे संभव हैं? होना तो यह चाहिए था कि पहले मनुष्य आता वो कर्म करता फिर अपने कर्मो के भोग भोगता परन्तु ऐसा हुआ नहीं पहले ईश्वर ने एक नहीं दो दो योनियाँ रखी और बाद में मनुष्य को भेजा क्यूंकि हमारा मालिक सर्वज्ञता हैं। उसे मालूम था कि कुछ लोग 'आवागमन' के सिद्धान्त में फंसकर अपने मृत्यु उपरांत अनंत जीवन, जो उन्हें इश्वर के पास प्राप्त होना था, उसे सदा के लिए नर्क में प्रवेश पाकर नष्ट कर लेंगे। हमारे अति कृपालु ईश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति के अन्तकरण में चेतना रखी हैं। आवश्यकता हैं की हम स्वयं अपने विवेक से निर्णय करें।




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