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Wednesday, 7 March 2012

हिंदू धर्म में एकेश्वरवाद


1. सिर्फ एक ईश्वर है उसी की इबादत (उपासना) करो.
- ऋग्वेद 6:45:16

2. वो (ईश्वर) एक है उसका कोई साझी नहीं है.
- छान्दोग्य उपनिषद 6:02:01

3. जो असम्भूति अर्थात प्रकृति रूप से जड़ पदार्थ  (अग्नि, मिट्टी, वायु आदि)  की उपासना करते हैं, वह अज्ञान के अन्धकार में प्रविष्ट होते हैं और जो 'सम्भूति' अर्थात प्रकृति पदार्थो के परिणामस्वरूप सृष्टि (तख़्त, तस्वीर, मूर्तियाँ आदि) में रमन करते हैं वह उससे भी अधिक अन्धकार में पड़ते हैं.
- यजुर्वेद 40:9

4. ज्ञानी लोग एक ईश्वर को अलग-अलग नामो से पुकारते है.
- ऋग्वेद 1:164:46

5. उसकी कोई प्रतिमा नहीं है उसका नाम ही अत्यंत महान है, सबसे बड़ा यश यही है.
- यजुर्वेद 32:3

6. वो एक है लेकिन बुद्धिमान लोग उसे विभिन्न नामो से पुकारते है जैसे- इंद्र, मित्र, वरुण, अग्नि, दिव्या, प्रकाशपुंज, सुपर्णा (संसार की सुरक्षा और इसकी देखभाल करने वाला) इत्यादि उसका कार्य बिलकुल ठीक-ठीक होता है.
- ऋग्वेद 1:22:164

7. मेरे परम भाव को न जानने वाले मुर्ख लोग मुझ सम्पूर्ण भूतो के महान ईश्वर को शरीरधारी समझ कर मेरा अपमान करते हैं.
- गीता 9:11

8. वो शरीरविहीन (bodyless) और पाक है.
- यजुर्वेद 40:8

9. उसके सिवा किसी की उपासना ना करो वही खुदा है उसी की तारीफ करो.
- ऋग्वेद 8:01:01

10. मिट्टी पत्थर आदि की मूर्तियाँ देव नही होती है.
- श्रीमद भागवत महापुराण 10:84:11

11. सिर्फ वोह एक ही स्वयं से (बिना किसी के जन्म दिए) अकेला विधमान है.
- अर्थर्ववेद 13:04:12

13. एक ईश्वर ही पूजा के योग्य और सभी प्रजातियों में स्तुति के योग्य है.
- अर्थर्ववेद 2:02:01

इस्लाम और हिंदू धर्म में कुछ समान बाते

1. ज्ञानी लोग एक ईश्वर को अलग-अलग नामो से पुकारते है.
 - ऋग्वेद 1:164:46


कह दो तुम अल्लाह कह कर पुकारो या रहमान कह कर पुकारो उसे जो भी कह कर पुकारो, उसके सभी अच्छे नाम है.
- कुरान 17:110


2. ईश्वर के विधान नही बदलते.
- ऋग्वेद 1:24:10


अल्लाह की बातो में कोई परिवर्तन नहीं हुआ करता.
- कुरान 10:64


3. ऋषियों के द्वारा स्तुतिये (पूज्य) परमेश्वर ने परस्पर जुड़े हुए प्राचीन आसमान और पृथ्वी को अलग-अलग किया फिर उत्तम कर्म वाले ने सूर्ये के समान उन दोनों को स्थित  किया.
- ऋग्वेद 1:162:7


क्या इंकार करने वालो ने नही देख लिया की ये आसमान और धरती पहले परस्पर जुड़े हुए थे फिर हमने उन्हें अलग-अलग किया.
- कुरान 21:30


4. इस संसार के बनाए वाले के लिये स्तुति है.
- ऋग्वेद 5:81:1


स्तुतियो का पात्र अल्लाह ही है जो सब संसारो का प्रभु है.
- कुरान 1:01


5. जो देने वाला और दयावान है.
- ऋग्वेद 03:34:01

जो असीम कृपावान और दयावान है.

- कुरान 01:02


6. हमको हमारे कल्याण के लिये सदमार्ग पर ले चल.
- यजुर्वेद 40:16


हे परमेश्वर हमारा सीधे मार्ग की ओर मार्गदर्शन कर.
- कुरान 1:05


7. वह ईश्वर सारे जगत को भली प्रकार जानता है.
- ऋग्वेद 10:187:4


और अल्लाह आसमानों और धरती मुझे जो कुछ है उसे जानता हैं, अल्लाह हर वास्तु का ज्ञान रखता   है.
- कुरान 49:16

8. ईश्वर  के नियम कोई नहीं बदल सकता.

- अर्थर्ववेद 18:01:05


और तुम ईश्वर के विधान मुझे कोई परिवर्तन नहीं पाओगे.
- कुरान 48:23


9. संसार का सृष्टा आगे, पीछे, ऊपर, नीचे सब जगह है.
- ऋग्वेद 10:34:14


सो तुम जिधर भी मुंह करो उधर ही अल्लाह का रुख है, अल्लाह बेशक बड़ा सर्वविस्तृत और जानने  वाला है.
- कुरान 2:115


10. चंद्रमा सहित ये सब नक्षत्र उसी के वश में हैं.
- अर्थर्ववेद 13:428


उसी ने पैदा किए सूर्ये, चन्द्रमा और तारे, (ये) सब उसके आदेश के अधीन है.
- कुरान 7:54

Tuesday, 6 March 2012

श्रीराम शर्मा आचार्य के कथन धरम के सम्बन्ध में:



"सृष्टि का सृष्टा एक ही है. वही उत्पादन, अभिवर्धन तथा परिवर्तन की सारी प्रक्रियाए अपनी योजनानुसार संपन्न करता है. ना उसका कोई साझीदार है और न सहायक ...एक ही सत्ता भिंनन-भिन्न प्रकार की हो गयी और समझा जाने लगा की जो जिस देवी देवता की पूजा पतरी करेगा वह उसी को अपना समझेगा और उसी की हिमायत करेगा ... ये मान्यता है आज के बहुदेववाद की. प्रकार सृष्टा का ही खंड विभाजन नही हुआ वरन अपने - अपने कुल-वंश, ग्राम, नगर के भी पृथक-पृथक देवी - देवता बन गए. विभाजन और संकीर्णता इतने तक ही सीमित नही रही, परमेश्वर का भी बंटवारा कर लिया गया. अनेक देवी - देवता बन कर खड़े हो गए. उनकी आकृति ही नही प्रकृति भी अपने को न पूजने दुसरे को पूजने पर वह देवता रुष्ट और तिरस्कार देने पर उतारू होने लगे. शारीरिक, मानसिक बिमारियों को उन्ही के रुष्ट का कारण माना जाने लगा. बहुदेववाद के पीछे अनेकानेक कथा कहानियां जोड़ी गयी और उनकी प्रशंसा से मिलने वाले लाभों का उनकी नाराजगी से मिलने वाले त्रासों की महात्मे गाथाये गढ़ ली गयी. कितने ही देवताओं का किन्ही पर्व त्योहारों के साथ संबंध जोड़ दिया गया. कइयो के स्थान विशेष जाना आवश्यक माना गया. समझा जाना चाहिए की ईश्वर एक है. उसकी व्यवस्था में अनेक साझीदार नहीं हो सकते ... सम्प्रदायों में ईश्वर की आकृति और प्रकृति अनेक प्रकार की मानी गई है. यदि ये सच मानी जाए तो इनमे से किसी एक को सच्चा और बाक़ी सबको झूठा कहना पड़ेगा. उनके प्रति पूज्य भाव रखते हुए भी ये निर्णय करना कठिन है की परस्पर विरोधी इन प्रतिपादनों में कौन सही और कौन ग़लत है. तत्व दर्शन और विवेक बुध्दी के आधार पर यह मानना पड़ता है की परमेश्वर एक है. सम्प्रदायों की मान्यताओं के अनुसार उसके स्वरूप और विधान सही नहीं हो सकते. वियापक शक्ति को निराकार होना चाहिए. जिसका आकर होगा जो एक देशीय और सीमित रहेगा. कहा भी गया है - 'ना तस्य प्रतिमा अस्ति ' (यजुर्वेद 32:3) अर्थात उसकी कोई प्रतिमा नहीं है. ना स्वरूप ना छवि. आप्त वचनों का एक और भी कथन ऐसा ही अभेद है. उसमे कहा गया है - 'एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति' अर्थात 'एक ही परमेश्वर को विद्वानों ने बहुत प्रकार से कहा है'. यहाँ अन्धो द्वारा हाथी का एक-एक अंग पकड़ कर उसे उसी आकृति का बताये जाने वाली कहानी याद आ जाती है .... तत्वदर्शियो ने सर्वसाधारण की सामान्य बुद्धि को चित्रकारिता के माध्यम से मानवी गरिमा और उत्कृष्टा के लिये आवश्यक धारणाओं और प्रयासों के संबंध रहस्यमय चित्रों में चित्रित किया है. उनका ये अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए की निराकर, और सर्वव्यापी न्यायकारी परमेश्वर की सृष्टि वयवस्था में कोई साझीदार भी है और वह मात्र मनुहार, उपहार, उपचार के आधार पर प्रसन्न-अप्रसन्न होते रहते हैं. पात्रता कुपात्रता का विचार किए बिना शाप वरदान देते रहते हैं, रुष्ट और अप्रसन्न होते रहते हैं. ऐसी मान्यताये अंधविश्वास में गिनी जायेंगी और उन्हें अपनाने वाले को भ्रमित करेंगी. वास्तविकता को कोसो दूर ले जा पटकेंगी . हम में प्रत्येक को यथार्थवादी और तत्वदर्शी होना चाहिए".
श्री राम शर्मा आचार्य (13-16 पेज, अखंड ज्योति, जून 1985)