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Friday, 24 May 2013

महात्मा गांधी और इस्लाम

1. गाँधी जी ने हरिजन पत्रिका में 1937 में लिखा था कि, "यदि हमें स्वराज प्राप्त होता है तो हम देश की शासन प्रणाली हज़रत उमर (द्वितीय ख़लीफा) की ख़िलाफ़त की तर्ज़ पर चलाएंगे।
यदि परिवर्तन लाना ही है तो गांधीजी द्वारा पसन्द की गई शासन व्यवस्था की भी कुछ झलक देख ली जाय-

हज़रत उमर द्वारा लागू किये गए इस्लामी शरीयत के क़ानून के मुताबिक़ -
* फौजदारी के क़ानून मुस्लिम और ग़ैरमुस्लिम दोनों पर बराबर लागू होंगे चाहे मुसलमान का माल ग़ैरमुस्लिम चुराए या ग़ैरमुस्लिम का माल मुसलमान चुराए, सज़ा दोनों को बराबर मिलेगी।
* शराब बनाने, बेचने या पीने के मामले में सज़ा के हक़दार केवल मुसलमान होंगे।
* सूद और उसका कारोबार सबके लिए अपराध होगा।
* शराब की तरह से ही सूअर पालने, उसका मांस बेचने और खाने पर ग़ैरमुस्लिमों को न रोका जायेगा। यहाँ तक कि अगर कोई मुसलमान किसी ग़ैरमुस्लिम के सूअर या शराब को नुक़सान पहुंचाता है तो उससे उस माल का हर्जाना दिलवाया जाएगा।

यह कुछ हलकी सी झलकियाँ पेश की गई हैं ताकि इनका अध्ययन करके देश हित में जिसको जनता उचित समझे उसके अनुसार परिवर्तन लाने की कोशिश एक अच्छा क़दम साबित होगी।


2. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1937 में अपने लेक्चर में सादगी की जिन्दगी गुजारने का मशवरा देते हुए कहा:
''कि मैं रामचंद्र और कृष्ण का हवाला नहीं दे सकता हूं
क्यूकि वो तारीखी हस्तियां नहीं हैं, मैं मजबूर हूं
सादगी के लिए हजरत अबु बकर रजि. और हजरत उमर रजि.
का नाम पेश करता हूं, वो बहुत बडी सलतन्त के हाकिम थे
मगर उन्हों ने सादगी की जिन्दगी गुजारी
“Mahatma Gandhi in his statement in in the “Tej” dated
5th October 1925 said “Mahabharata’s
Krishna never existed on the earth.”
He said in Harijan dated 27th July 1937 that
“I do not mention the name of Rama and
Krishna, because they were not historical
figures, but I am inclined to mention the
names of Abu-Bakr and Umar.
“Gandhi in his statement in in the “Tej” dated
5th October 1925


3.  

Miracles of Quran: धरती की अवस्था: गोल या चपटी #2

प्राराम्भिक ज़मानों में लोग विश्वस्त थे कि ज़मीन चपटी है, यही कारण था कि सदियों तक मनुष्य केवल इसलिए सुदूर यात्रा करने से भयाक्रांति करता रहा कि कहीं वह ज़मीन के किनारों से किसी नीची खाई में न गिर पडे़! सर फ्रांस डेरिक वह पहला व्यक्ति था जिसने 1597 ई0 में धरती के गिर्द ( समुद्र मार्ग से ) चक्कर लगाया और व्यवहारिक रूप से यह सिद्ध किया कि ज़मीन गोल (वृत्ताकार ) है। यह बिंदु दिमाग़ में रखते हुए ज़रा निम्नलिखित क़ुरआनी आयत पर विचार करें जो दिन और रात के अवागमन से सम्बंधित है:
‘‘ क्या तुम देखते नहीं हो कि अल्लाह रात को दिन में पिरोता हुआ ले आता है और दिन को रात में ‘‘
(अल-.क़ुरआन: सूर: 31 आयत 29 )
यहां स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि अल्लाह ताला ने क्रमवार रात के दिन में ढलने और दिन के रात में ढलने (परिवर्तित होने )की चर्चा की है ,यह केवल तभी सम्भव हो सकता है जब धरती की संरचना गोल (वृत्ताकार ) हो। अगर धरती चपटी होती तो दिन का रात में या रात का दिन में बदलना बिल्कुल अचानक होता ।
निम्न में एक और आयत देखिये जिसमें धरती के गोल बनावट की ओर इशारा किया गया है:
उसने आसमानों और ज़मीन को बरहक़ (यथार्थ रूप से )उत्पन्न किया है ,, वही दिन पर रात और रात पर दिन को लपेटता है।,,(अल.-क़ुरआन: सूर:39 आयत 5)
यहां प्रयोग किये गये अरबी शब्द ‘‘कव्वर‘‘ का अर्थ है किसी एक वस्तु को दूसरे पर लपेटना या overlap करना या (एक वस्तु को दूसरी वस्तु पर) चक्कर देकर ( तार की तरह ) बांधना। दिन और रात को एक दूसरे पर लपेटना या एक दूसरे पर चक्कर देना तभी सम्भव है जब ज़मीन की बनावट गोल हो ।
ज़मीन किसी गेंद की भांति बिलकुल ही गोल नहीं बल्कि नारंगी की तरह (geo-spherical) है यानि ध्रुव (poles) पर से थोडी सी चपटी है। निम्न आयत में ज़मीन के बनावट की व्याख्या यूं की गई हैः ‘‘और फिर ज़मीन को उसने बिछाया ‘‘(अल क़ुरआन: सूर 79 आयत 30)
यहां अरबी शब्द ‘‘दहाहा‘‘ प्रयुक्त है, जिसका आशय ‘‘शुतुरमुर्ग़‘‘ के अंडे के रूप, में धरती की वृत्ताकार बनावट की उपमा ही हो सकता है। इस प्रकार यह माणित हुआ कि पवित्र क़ुरआन में ज़मीन के बनावट की सटीक परिभाषा बता दी गई है, यद्यपि पवित्र कुरआन के अवतरण काल में आम विचार यही था कि ज़मीन चपटी है।

Miracles of Quran: अंतरिक्ष विज्ञान (Astrology)

सृष्टि की संरचना: ‘‘बिग बैंग ‘‘अंतरिक्ष विज्ञान के विशेषज्ञों ने सृष्टि की व्याख्या एक ऐसे सूचक (phenomenon) के माध्यम से करते हैं और जिसे व्यापक रूप ‘‘से बिग बैंग‘‘(big bang) के रूप में स्वीकार किया जाता है। बिग बैंग के प्रमाण में पिछले कई दशकों की अवधि में शोध एवं प्रयोगों के माध्यम से अंतरिक्ष विशेषज्ञों की इकटठा की हुई जानकारियां मौजूद है ‘बिग बैंग‘ दृष्टिकोण के अनुसार प्रारम्भ में यह सम्पूर्ण सृष्ठि प्राथमिक रसायन (primary nebula) के रूप में थी फिर एक महान विस्फ़ोट यानि बिग बैंग (secondry separation) हुआ जिस का नतीजा आकाशगंगा के रूप में उभरा, फिर वह आकाश गंगा विभाजित हुआ और उसके टुकड़े सितारों, ग्र्रहों, सूर्य, चंद्रमा आदि के अस्तित्व में परिवर्तित हो गए कायनात, प्रारम्भ में इतनी पृथक और अछूती थी कि संयोग (chance) के आधार पर उसके अस्तित्व में आने की ‘‘सम्भावना: (probability) शून्य थी । पवित्र क़ुरआन सृष्टि की संरचना के संदर्भ से निम्नलिखित आयतों में बताता है:
‘‘क्या वह लोग जिन्होंने ( नबी स.अ.व. की पुष्टि ) से इन्कार कर दिया है ध्यान नहीं करते कि यह सब आकाश और धरती परस्पर मिले हुए थे फिर हम ने उन्हें अलग किया‘‘(अल – क़ुरआन: सुर: 21, आयत 30 )
इस क़ुरआनी वचन और ‘‘बिग बैंग‘‘ के बीच आश्चर्यजनक समानता से इनकार सम्भव ही नहीं! यह कैसे सम्भव है कि एक किताब जो आज से 1400 वर्ष पहले अरब के रेगिस्तानों में व्यक्त हुई अपने अन्दर ऐसे असाधारण वैज्ञानिक यथार्थ समाए हुए है?
आकाशगंगा की उत्पत्ति से पूर्व प्रारम्भिक वायुगत रसायन
वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि सृष्टि में आकाशगंगाओं के निर्माण से पहले भी सृष्टि का सारा द्रव्य एक प्रारम्भिक वायुगत रसायन (gas) की अवस्था में था, संक्षिप्त यह कि आकाशगंगा निर्माण से पहले वायुगत रसायन अथवा व्यापक बादलों के रूप में मौजूद था जिसे आकाशगंगा के रूप में नीचे आना था. सृष्टि के इस प्रारम्भिक द्रव्य के विश्लेषण में गैस से अधिक उपयुक्त शब्द ‘‘धुंआ‘‘ है।
निम्नांकित आयतें क़ुरआन में सृष्टि की इस अवस्था को धुंआ शब्द से रेखांकित किया है।
‘‘फिर वे आसमान की ओर ध्यान आकर्षित हुए जो उस समय सिर्फ़ धुआं था उस (अल्लाह) ने आसमान और ज़मीन से कहा:अस्तित्व में आजाओ चाहे तुम चाहो या न चाहो‘‘ दोनों ने कहा: हम आ गये फ़र्मांबरदारों (आज्ञाकारी लोगों) की तरह‘‘(अल ..कु़रआन: सूर: 41 ,,आयत 11)
एक बार फिर, यह यथार्थ भी ‘‘बिग बैंग‘‘ के अनुकूल है जिसके बारे में हज़रत मुहम्मद मुस्तफा़ (स.अ.व. )की पैग़मबरी से पहले किसी को कुछ ज्ञान नहीं था (बिग बैंग दृष्टिकोण बीसवीं सदी यानी पैग़मबर काल के 1300 वर्ष बाद की पैदावार है )
अगर इस युग में कोई भी इसका जानकार नहीं था तो फिर इस ज्ञान का स्रोत क्या हो सकता है?